सोमवार, 30 जून 2014

सूर्य....

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सूर्य 

ज्योतिषां रविरंशुमान - गीता; सूर्य आत्मा जगत्स्तथुषश्च - ऋग्वेद

श्रीमदभागवत पुराण  के अनुसार:- भूलोक तथा द्युलोक के मध्य में अन्तरिक्ष लोक है। इस द्युलोक में सूर्य भगवान नक्षत्र तारों के मध्य में विराजमान रह कर तीनों लोकों को प्रकाशित करते हैं।  वैदिक काल से ही भारत में सूर्योपासना का प्रचलन रहा है.पहले यह सूर्योपासना मंत्रों से होती थी.बाद में मूर्ति पूजा का प्रचलन हुआ तो यत्र तत्र सूर्य मन्दिरों का नैर्माण हुआ.भविष्य पुराण में ब्रह्मा विष्णु के मध्य एक संवाद में सूर्य पूजा एवं मन्दिर निर्माण का महत्व समझाया गया है.अनेक पुराणों में यह आख्यान भी मिलता है,कि ऋषि दुर्वासा के शाप से कुष्ठ रोग ग्रस्त श्री कृष्ण पुत्र साम्ब ने सूर्य की आराधना कर इस भयंकर रोग से मुक्ति पायी थी.प्राचीन काल में भगवान सूर्य के अनेक मन्दिर भारत में बने हुए थे.वेदों में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है.समस्त चराचर जगत की आत्मा सूर्य ही है..सूर्य का शब्दार्थ है सर्व प्रेरक.यह सर्व प्रकाशक,सर्व प्रवर्तक होने से सर्व कल्याणकारी है.ऋग्वेद के देवताओं कें सूर्य का महत्वपूर्ण स्थान है.यजुर्वेद ने "चक्षो सूर्यो जायत" कह कर सूर्य को भगवान का नेत्र माना है.छान्दोग्यपनिषद में सूर्य को प्रणव निरूपित कर उनकी ध्यान साधना से पुत्र प्राप्ति का लाभ बताया गया है.ब्रह्मवैर्वत पुराण तो सूर्य को परमात्मा स्वरूप मानता है.प्रसिद्ध गायत्री मंत्र सूर्य परक ही है.सूर्योपनिषद में सूर्य को ही संपूर्ण जगत की उतपत्ति का एक मात्र कारण निरूपित किया गया है.और उन्ही को संपूर्ण जगत की आत्मा तथा ब्रह्म बताया गया है.सूर्योपनिषद की श्रुति के अनुसार संपूर्ण जगत की सृष्टि तथा उसका पालन सूर्य ही करते है.सूर्य ही संपूर्ण जगत की अंतरात्मा हैं.सूर्य आत्माकारक ग्रह है,यह राज्य सुख,सत्ता,ऐश्वर्य,वैभव,अधिकार,आदि प्रदान करता है.यह सौरमंडल का प्रथम ग्रह है,कारण इसके बिना उसी प्रकार से हम सौरजगत को नही जान सकते थे,जिस प्रकार से माता के द्वारा पैदा नही करने पर हम संसार को नही जान सकते थे.सूर्य सम्पूर्ण सौर जगत का आधार स्तम्भ है.अर्थात सारा सौर मंडल,ग्रह,उपग्रह,नक्षत्र आदि सभी सूर्य से ही शक्ति पाकर इसके इर्द गिर्द घूमा करते है,यह सिंह राशि का स्वामी है,परमात्मा ने सूर्य को जगत में प्रकाश करने,संचालन करने,अपने तेज से शरीर में ज्योति प्रदान करने,तथा जठराग्नि के रूप में आमाशय में अन्न को पचाने का कार्य सौंपा है. ज्योतिष  शास्त्र में सूर्य को मस्तिष्क का अधिपति बताया गया है,ब्रह्माण्ड में विद्यमान प्रज्ञा शक्ति और चेतना तरंगों के द्वारा मस्तिष्क की गतिशीलता उर्वरता और सूक्षमता के विकाश और विनाश का कार्य भी सूर्य के द्वारा ही होता है.यह संसार के सभी जीवों द्वारा किये गये सभी कार्यों का साक्षी है.और न्यायाधीश के सामने साक्ष्य प्रस्तुत करने जैसा काम करता है.यह जातक के ह्रदय के अन्दर उचित और अनुचित को बताने का काम करता है,किसी भी अनुचित कार्य को करने के पहले यह जातक को मना करता है,और अंदर की आत्मा से आवाज देता है.साथ ही जान बूझ कर गलत काम करने पर यह ह्रदय और हड्डियों में कम्पन भी प्रदान करता है.गलत काम को रोकने के लिये यह ह्रदय में साहस का संचार भी करता है.जो जातक अपनी शक्ति और अंहकार से चूर होकर जानते हुए भी निन्दनीय कार्य करते हैं,दूसरों का शोषण करते हैं,और माता पिता की सेवा न करके उनको नाना प्रकार के कष्ट देते हैं,सूर्य उनके इस कार्य का भुगतान उसकी विद्या,यश,और धन पर पूर्णत: रोक लगाकर उसे बुद्धि से दीन हीन करके पग पग पर अपमानित करके उसके द्वारा किये गये कर्मों का भोग करवाता है.आंखों की रोशनी का अपने प्रकार से हरण करने के बाद भक्ष्य और अभक्ष्य का भोजन करवाता है,ऊंचे और नीचे स्थानों पर गिराता है,चोट देता है.श्रेष्ठ कार्य करने वालों को सदबुद्धि,विद्या,धन,और यश देकर जगत में नाम देता है,लोगों के अन्दर इज्जत और मान सम्मान देता है.उन्हें उत्तम यश का भागी बना कर भोग करवाता है.जो लोग आध्यात्म में अपना मन लगाते हैं,उनके अन्दर भगवान की छवि का रसस्वादन करवाता है.सूर्य से लाल स्वर्ण रंग की किरणें न मिलें तो कोई भी वनस्पति उत्पन्न नही हो सकती है.इन्ही से यह जगत स्थिर रहता है,चेष्टाशील रहता है,और सामने दिखाई देता है. सूर्य नमस्कार योगासनों में सर्वश्रेष्ठ है। यह अकेला अभ्यास ही साधक को सम्पूर्ण योग व्यायाम का लाभ पहुंचाने में समर्थ है। इसके अभ्यास से साधक का शरीर निरोग और स्वस्थ होकर तेजस्वी हो जाता है। 'सूर्य नमस्कार' स्त्री, पुरुष, बाल, युवा तथा वृद्धों के लिए भी उपयोगी बताया गया है।अथवर्वेद में आगे लिखा गया है कि सूर्य की किरणों में रहना अमृत के संसार में रहने के समान है। ऋगवेद में भी इस बारे में यही कहा गया है कि सूर्य की किरणें प्राणियों को लंबी आयु प्रदान करती हैं। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार सूर्य अपने सात घोंड़ों वाले रथ पर सवार होकर आकाश में पूर्व से पश्चिम की ओर गति करता है। सूर्य रथ के यह सात घोड़े इसकी सात प्रकार की किरणों के समान हैं। आधुनिक विज्ञान ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि सूर्य प्रकाश में सात रंगों की किरणों का सूमेल होता है जो सूर्य से पैदा होती हैं। इनमें से प्रत्येक रंग की किरण (VIBGYOR) में खास चिकित्सकीय गुण मौजूद होते हैं। न्म संबंधी कुंडली में सूर्य का स्थान और स्थिति इन बीमारियों की ओर संकेत करते हैं। यहां तक कि कुंडली में सूर्य की स्थिति इन बीमारियों से ग्रस्त रहने की समय अवधि के बारे में जानकारी प्रदान करती है। यह जानकारी किसी ज्योतिषी की मदद से कुंडली के आकलन द्वारा प्राप्त की जा सकती है। सूर्य उपासना बेहद लाभदायक होती है। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य कमज़ोर हो तो उस व्यक्ति के लिए सूर्य उपासना और भी जरूरी हो जाती है। ऐसे में उस व्यक्ति के लिए सूर्य की उपासना करना बेहद लाभदायक रहता है।

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