राहु हिन्दू ज्योतिष के अनुसार उस असुर का कटा हुआ सिर है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार राहु को नवग्रह में एक स्थान दिया गया है। दिन में राहुकाल नामक मुहूर्त (२४ मिनट) की अवधि होती है जो अशुभ मानी जाती है।समुद्र मंथन के समय राहु नामक एक असुर ने धोखे से दिव्य अमृत की कुछ बूंदें पी ली थीं। सूर्य और चंद्र ने उसे पहचान लिया और मोहिनी अवतार में भगवान विष्णु को बता दिया। इससे पहले कि अमृत उसके गले से नीचे उतरता, विष्णु जी ने उसका गला सुदर्शन चक्र से काट कर अलग कर दिया। इससे उसका सिर अमर हो गया। यही राहु ग्रह बना और सूर्य चंद्रमा से इसी कारण द्वेष रखता है। इसी द्वेष के चलते वह सूर्य और चंद्र को ग्रहण करने का प्रयास करता है। ग्रहण करने के पश्चात सूर्य या चंद्र उसके कटे गले से निकल आते हैं और मुक्त हो जाते हैं।ज्योतिष के अनुसार राहु और केतु सूर्य एवं चंद्र के परिक्रमा पथों के आपस में काटने के दो बिन्दुओं के द्योतक हैं। सूर्य और चंद्र के ब्रह्मांड में चलने के अनुसार ही राहु और केतु की स्थिति भी बदलती रहती है। यह अधार्मिक व्यक्ति, निर्वासित, कठोर भाषणकर्त्ताओं, झूठी बातें करने वाले, मलिन लोगों का द्योतक भी रहा है। इसके द्वारा पेट में अल्सर, हड्डियों, और स्थानांतरगमन की समस्याएं आती हैं.....
गुरुवार, 26 जून 2014
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